NCERT notes jab janata bagavat karti hai

NCERT notes jab Janata bagavat karti hai

जब जनता बगावत करती है 1857 और उसके बाद in Hindi-English

मुख्य बिंदु important points in hindi

पाठ 5 कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास हमारे अतीत iii से

Best notes jab Janata bagavat karti hai free for all students in hindi mein जो इसको पढ़ेंगे वो ही ज्यादा नंबर लेंगे। इसमें lesson की पुरी details को आपके लिए रखा गया है। आपके exams में यही पाठ मदद कर करेगा, क्योंकि इसको social science के अध्यापक द्वारा तैयार किया गया है।

पाठ समीक्षा

Notes   Jab Janata Bagavat Karti Hai 1857 और उसके बाद

Lesson 5 class 8 social science history

सन् 1857 की लड़ाई को आजादी की पहली लड़ाई कहा जाता है | एक बात बिल्कुल सच है कि यह लड़ाई सैनिकों ने शुरू की थी| सैनिकों द्वारा शुरू की गई लड़ाई एक बड़े रूप में पूरे भारत में फैल गई थी| लड़ाई का मुख्य कारण "जनता-जनार्धन में व्यापक असंतोष"|

भारत के लोग वर्षों से इन गोरे अंग्रेजों के कठोर कानूनों और बुरी नीतियों से तंग आ चुके थे| भारत के लोग वर्षों से इनकी दोगली नीतियों को सहन कर रहे थे| लेकिन अब सिर से पानी उतर चुका था| अब खुल्लम-खल्ला भारतीय लोगों ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़नें का बिगुल बजा दिया था|

जैसे ही देश में सैनिकों ने विद्रोह आरंभ किया तो सभी धर्मों, सभी जातियों और सभी वर्गों के लोग इसमें कदम से कदम मिलाकर चल पड़े|इस समय आप class 8 History chapter 5 के बारे में पढ़ रहे है 

क्रांति के वें कारण जिससे यह साबित होता है कि भारतीय जनमानस में अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक असंतोष भरा हुआ था:-

1. राजनीतिक कारण:---

👉भारतीय शासक लॉर्ड डलहौजी और लॉर्ड वेलेजली की धोखेबाज लैप्स नीति से 100 प्रतिशत नाराज थे|

👉 नाना साहिब, पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे| अंग्रेजों ने नाना साहिब की पेंशन तक बंद कर दी थी| इसके कारण नाना साहिब अंग्रेजों के खिलाफ थे|

👉 अंग्रेजों ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को दत्तक पुत्र गोद लेने से मना कर दिया था| अंग्रेज़ झांसी को हड़पने की फिराक में थे| इस कारण झांसी की रानी अंग्रेजों के खिलाफ हो गई थी|

👉 अंग्रेज़ी साम्राज्य में नागपुर और सातारा जैसी बहुत सी रियासतें जबरन हड़पी गई थी। इस कारण उन सभी रियासतों के शासक अंग्रेजों के दुश्मन नंबर-1 हो गए थे।

👉 अंग्रेजों ने सरदारों व जमीनदारों की जमीनदारी छीन ली थी। जिसके कारण वह भी अंग्रेजों के शत्रु बन गए थे। यह class 8 History chapter 5 है।

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2. औद्योगिक क्रांति के कारण

 👉 यूरोप में औद्योगिक क्रांति तेज गति से फैली। इस कारण इंग्लैंड का मशीनी माल सस्ता होता गया और अंग्रेज उस सस्ते सामान को महंगी कीमत पर भारत में बेचने लगे। इसके कारण भारत के उद्योग लगभग ठप्प हो गए थे। भारतीय कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया और फिर वो भी अंग्रेजो के खिलाफ हो गए।

👉 अंग्रेजों ने भारत के व्यापार को बर्बाद करने के लिए दोगली व्यापारिक नीतियां बनाई थी। यह ऐसी नीतियां थी जिससे भारत का बना सामान यदि इंग्लैंड में जाता तो उस पर भारी भरकम टैक्स लगा दिया जाता था।

फिर वह सामान बहुत महंगा हो जाता था। जिससे भारतीय सामान को कोई खरीदार नहीं मिलता था। यदि इंग्लैंड के कारखानों से बना माल भारत में आता तो वह सामान मशीनों से बना होने के कारण अधिक कीमत पर बिकता।

भारत की जनता को महंगा सामान लेना पड़ता था। इन दोगली नीतियों के कारण भारतीय उद्योग धंधे ठप्प होते गए।

👉 अंग्रेजों ने जमींदारों को जमींदारी दी थी। वह एक निश्चित टैक्स अंग्रेजों के पास जमा कराते थे। वह किसानों से मनमर्जी कर वसूल कर लेते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि किसान लगातार गरीबी में कंगाल होता चला गया। इन कारणों से किसानों ने विद्रोह का मार्ग अपनाया। यह class 8 History chapter 5 का औद्योगिक क्रांति का कारण था।

3. सामाजिक कारण

👉 अंग्रेजों ने भारतीयों पर अंग्रेजी भाषा को थोपने के लिए अंग्रेजी भाषा के स्कूल व कालेजों को प्रोत्साहन दिया। 

👉 अंग्रेजों ने सती प्रथा को रोकने के लिए कानून बनाया जिसमें उन्होंने जनमानस का सहयोग नहीं लिया

👉 उन्होंने विधवा विवाह को बढ़ावा देने के लिए भी कानून बनाए थे।।

👉 अंग्रेजों ने 1830 के बाद ईसाई मिशनरियों को खुलेआम धर्म परिवर्तन करने और जमीन व संपत्ति जुटाने के लिए कानून बनाएं।

👉 अंग्रेजों ने 1850 में ऐसा कानून पास कर दिया जिसके तहत यदि कोई भी भारतीय ईसाई धर्म अपनाता है तो उसका अपने पूर्वजों की संपत्ति पर अधिकार बना रहेगा। वह अपने पूर्वजों की संपत्ति से अपना हक ले सकेगा पहले की तरह।

इन सब बातों से भारतीयों को पूरा विश्वास हो गया था कि यह गोरे अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट करके रहेंगे।यह हमारे धर्म, रिति-रिवाज व परंपरागत जीवन-शैली को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। जिसके फलस्वरूप भारतीयों में असंतोष पनप गया। अब आपने class 8 History chapter 5 का सामाजिक कारण पढ़ा है।

4. सैनिक कारण

👉 हिंदु सैनिक समुद्री यात्रा करना अपने धर्म के खिलाफ समझते थे। यह भी जानते हुए अंग्रेजों ने सन् 1850 में एक ऐसा कानून पास कर दिया जिसके तहत सैनिकों को लड़ने के लिए समुद्र पार भी जाना होगा।

👉 भारतीय सैनिकों के साथ परेड में बुरा बर्ताव किया जाता था। भारतीय सैनिक इस बुरे बर्ताव को अधिक वर्षों तक सहन नहीं कर सके।

 👉अंग्रेजी सेना में भारतीय सैनिकों के साथ-साथ अंग्रेज  सैनिक भी थे। अंग्रेज सैनिकों को भारतीय सैनिकों से ज्यादा वेतन दिया जाता था। यह भी भारतीयों सैनिकों के साथ दोगला व्यवहार था।

👉 अंग्रेज अधिकारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति का मजाक भारतीय सैनिकों के सामने ही उड़ाते थे। भारतीय सैनिक इन अपमानों को सहन नहीं कर पा रहे थे। यें वाला class 8 History chapter 5 का सैनिक कारण था।

5. अवध को हड़पना

👉 अंग्रेजों ने 1801 में अवध पर सहायक संधि थोपी थी। 1856 में अवध को अपने कब्जे में ले लिया। गवर्नर-जनरल डलहौजी ने तो अवध के शासक पर राज्य का शासन तरह से नहीं चलाने का आरोप लगाया।

6. मुगल शासन को समाप्त करने की घोषणा

👉 अंग्रेजों ने अपने द्वारा बनाए गए सिक्कों पर से मुगल बादशाह के नाम को छापना बंद कर दिया था। गवर्नर जनरल डलहौजी ने 1819 में घोषणा की कि बादशाह बहादुर शाह जफर की मृत्यु के बाद उनके परिवार को लाल किले से विस्थापित करके दिल्ली में दूसरी जगह पर बसाया जाएगा। मुस्लिम जनता इस कारण भी नाराज़ हुई।

Quiz lesson 1 class 8 history 

7. मुगल बादशाह के पद को समाप्त करना

👉 गवर्नर जनरल केनिंग ने 1856 में यह निर्णय लिया कि बहादुर शाह जफर को अंतिम मुगल बादशाह माना जाएगा। उनके मरने के बाद 'बादशाह' की पदवी को समाप्त कर दिया जाएगा। यह भी क्रांति का एक कारण बना।


8. समुंद्र यात्रा न करने पर कठोर दंड

👉 ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय सैनिकों को   1824 में बर्मा जाने का आदेश दिया। लेकिन भारतीय सैनिकों ने समुंद्र की यात्रा करने से मना कर दिया था। इस कारण भारतीय सैनिकों को ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने कठोर दंड दिया था। भारतीयों को अपने धर्म से अति लगाव था। अंग्रेजों ने भारतीय धर्म की खिल्ली भी उड़ाई थी।

9. तात्कालिक कारण

👉 अंग्रेज अपने बुरे काम कैसे छोड़ सकते थे। वें तो भारतीयों के धर्म को नष्ट करने पर तुले हुए थे। इसके लिए उन्होंने भारतीय सैनिकों को सैनिक अभ्यास करने के लिए ऐसे  कारतूस दिए थे। उन कारतूसों को मुंह से काटकर बंदूक में लगाना पड़ता था। यह ऐसे कारतूस थे जिन पर गाय और सूअर की चर्बी लगाई गई थी।

भारतीय सैनिकों को जब यह पता चला तो नाराज से भी बढ़कर नाराज होते चले गए। इस तरह भारत में सन् 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई।

👉 बैरकपुर छावनी के कुछ सैनिकों ने तो इन कारतूसों के साथ अभ्यास करने से मना कर दिया था। अंग्रेजों ने 85 सैनिकों को नए कारतूस का प्रयोग नहीं करने के आरोप में नौकरी से हटा दिया।

👉 उन सैनिकों को अपने अंग्रेज अफसरों का आदेश नहीं मानने के आरोप में 10-10 साल की सख़त सजा सुनाई। यह घटना 9 मई, 1857 की थी।

👉 मंगल पांडे नाम के भारतीय सैनिक ने अपने धर्म को बचाने के लिए अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर दी। अंग्रेजों ने 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे को फांसी पर लटका दिया था।

👉 छावनी के सैनिक यह घटना से सख्त नाराज हो गए उन्होंने अंग्रेजी अफसरों को मार डाला और छावनी पर पूरा कब्जा कर लिया और वहां के सैनिकों ने देश के अलग-अलग भागों में पहुंचकर अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन को मजबूत किया।

👉 मेरठ से सैनिकों की एक टोली दिल्ली में बहादुर शाह ज़फर के पास पहुंच कर उनको 1857 के विद्रोह की अगुवाई के लिए उनको महल में मनाया और उनको भारत का बादशाह घोषित कर दिया। देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत बढ़ चुकी थी। अंग्रेजों के पैरों तले की जमीन खिसक गई थी और उनको पता तक ना चला,वो बहुत हैरान थे।

👉 बहादुर शाह ज़फर ने पहले तो विद्रोह का नेतृत्व करने से मना कर दिया था। लेकिन बाद में सैनिकों के मनाने पर मान गए।

1857 के विद्रोह के दौरान देश के अनेक भागों से महत्वपूर्ण क्रांतिकारी सामने आए।

👉 जनता ने लखनऊ में नवाब वाजिद अली शाह के पुत्र बिरजिस कद्र अपना नया नवाब घोषित कर दिया। बिरजिस कद्र ने बहादुर शाह जफर को अपना सम्राट माना। कद्र की मां बेगम हजरत महल ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह में बढ़ चढ़कर भाग लिया।

👉 फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्लाह शाह अपने समर्थकों को साथ को लेकर लखनऊ में अंग्रेजों से लड़ने गए थे। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि अंग्रेजों का शासन जल्दी समाप्त हो जाएगा।

👉 बरेली के सिपाही बख्त खान दिल्ली की ओर अपने साथ लड़ाकों की टुकड़ी लेकर कूच किया था।

अंग्रेजों के लिए 💀खतरनाक स्थिति

लेफ्टिनेंट कर्नल टाइटलर 6 अगस्त 1857 को अपने commander-in-chief को टेलीग्राम भेजा था जिसमें उसने अंग्रेजों के डर को इन शब्दों में लिखा "हमारे लोग विरोधियों की संख्या और लगातार लड़ाई से थक गए हैं। एक-एक गांव हमारे विरुद्ध है। जमींदार भी हमारे विरोध में उठ खड़े हुए हैं"

👉 बिहार से कुंवर सिंह जमींदार :- बिहार से कुंवर सिंह जमींदार ने क्रांतिकारी सिपाहियों का साथ दिया था। उन्होंने लड़ाई में कई महीनों तक अंग्रेजों की नाक में दम किया। क्रांति के समय उनकी आयु लगभग 80 वर्ष की थी। कालपी, बांदा और रेवा में उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया। कुंवर सिंह ने नाना साहिब की भी मदद की थी। कुंवर सिंह के साहस और संगठन शक्ति की प्रशंसा उनके दुश्मन भी करते थे। अंग्रेजों के साथ अप्रैल 1958 में युद्ध में लड़ते हुए उनकी मृत्यु हो गई।

👉 रानी लक्ष्मीबाई :---झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अपने पति की मृत्यु के बाद वहां का शासन से संभाल रही थी। वह अंग्रेजों की बुरी नियत को अच्छी तरह से जानती थी। अंग्रेजों ने उनको पुत्र गोद लेने की आज्ञा नहीं दी थी। अंग्रेज़ झांसी के राज्य को हड़पने के लिए षड्यंत्र कर रहे थे। अंग्रेज सेनापति सर हृयूरोज ने 1858 में झांसी पर हमला किया। वहां पर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी ताकत के साथ किले की रक्षा की।

तांत्या टोपे ने भी रानी की मदद की थी। इसके कारण अंग्रेज सेनापति सर हृयूरोज को मुंह की खानी पड़ी और लड़ाई के मैदान में हार गया। इसके बाद अंग्रेज जून1858 में फिर से आ दमके। इस बार रानी के साथ रहने वाले लोगों ने रानी के साथ गद्दारी की। रानी के साथियों ने अंग्रेजों के साथ दिया। गद्दारों के कारण रानी हार गई और लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुई। इतिहास उनका नाम हमेशा याद रखा जाएगा।

👉 बहादुर शाह जफर:---बहादुर शाह जफर ने विद्रोहियों का साथ दिया था। जब विद्रोह सफल न होने पर अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर लिया। उनको आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया। उनके सामने ही उनके पुत्रों को अंग्रेजों ने गोली मार दी थी।

बहादुर शाह जफर व उनकी पत्नी बेगम जीनत महल को सज़ा के लिए अक्टूबर 1858 में रंगून की जेल (म्यांमार) में भेज दिया। रंगून जेल की चारदीवारी में मुगल बादशाह बहादुर शाह ने घुट-घुट कर अपने अंतिम दिन काटे।बादशाह बहादुर शाह जफर की बीमारियों के कारण नवंबर 1862 में मृत्यु हो गई।

👉 नाना साहिब:---नाना साहिब को एक प्रसिद्ध मराठा सरदार माना जाता था। वह बड़े वीर और साहसी भी थे। वे पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे। उन्होंने जून 1857  में अपने आप को पेशवा घोषित कर दिया था। लेकिन अंग्रेजों ने उनको पेशवा नहीं माना। नाना‌ साहिब अंग्रेजो के खिलाफ हो गए।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम  में नाना साहिब ने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। कानपुर में नाना साहिब और अंग्रेज कर्नल नील से उनकी लड़ाई हुई। दोनों में भीषण लड़ाई चली। बुरे वक्त के चलते नानासाहेब की हार हुई।


👉 तांत्या टोपे:---तांत्या टोपे ने मध्य भारत के जंगलों में रहकर अंग्रेजों पर गोरिल्ला हमले किए। उन्होंने आदिवासियों और किसानों की सहायता से अंग्रेजों पर बहुत सारे हमले किए। अंत में गद्दारों के कारण वह भी पकड़े गए और उन को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया। तांत्या टोपे अप्रैल, 1859 वीरगति को प्राप्त हुई।

👉 अंग्रेजों ने जमींदारों को कब्जे में किया:---अंग्रेजों ने लड़ाई के बजाए अपने दिमाग से काम लिया उन्होंने भू-स्वामियों व काश्तकारों की एकता को तोड़-मरोड़ दिया। अंग्रेजों ने भू-स्वामियों को वादा किया कि उनको उनकी जागीरदारी लौटा देंगे। जिन जमींदारों ने अंग्रेजों से वफादारी निभाई थी, उनको ईनाम में जमीनें और सोने चांदी के सिक्के दिए गए।

लड़ाई का रास्ता अपनाने वाले जमींदारों को भूमि से बेदखल कर दिया। बहुत सारे जमींदार या तो अंग्रेजी कंपनी से लड़ते हुए शहीद हो गए या भारत से भाग कर नेपाल में चले गए। वहां उन्होंने भूख व बीमारियों से दम तोड़ दिया, लेकिन जमीन और सोने-चांदी के लिए भारत माता से गद्दारी नहीं की। ऐसे जमींदारों को नमन है 🙏 ।

अंग्रेजों का दिल्ली पर अधिकार होने के बाद भी विद्रोही अंग्रेजों पर हमले करते रहे। अंग्रेजों को इन विद्रोह को कुचलने में 2 साल तक उनके साथ लड़ाई लड़नी पड़ी।

सितंबर, 1857 में दिल्ली पर अंग्रेजों ने फिर से कब्जा कर लिया था।

मार्च 1858 में लखनऊ पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया था।

1857 के विद्रोह के असफल होने के कारण:---भारतीय ने 1857 में स्वतंत्रता संग्राम को शुरू किया था। उसके असफल होने के कारण निम्नलिखित है:-

1. समय से पहले शुरू होना :---यह विद्रोह समय से पहले शुरू हुआ था। देश में विद्रोह के लिए एक निश्चित तिथि 25 मई 1857 घोषित कर रखी थी। अंग्रेजों के चर्बी वाले कारतूस के कारण विद्रोह समय से पहले ही शुरू हो गया। परिणाम स्वरूप हम भारतीयों को हार का मुख देखना पड़ा 😭

2. सीमित विद्रोह :--- यह एक सीमित विद्रोह बनकर रह गया था। इस विद्रोह में केवल उत्तरी भारत की जनता ने अंग्रेजों का सामना किया। दक्षिण भारत में तो केवल छिटपुट घटनाएं हुई थी। उत्तरी भारत में तो अंग्रेजों के पैरों तले की जमीन तक खिसक गई थी। यदि इस लड़ाई में पूरा भारत एकता के साथ अंग्रेजों का मुकाबला करता तो अंग्रेजों को भारत से नौ दो ग्यारह होना पड़ता। 

3. योग्य नेताओं की कमी :---विद्रोहियों(क्रांतिकारियों) के पास एक ऐसा नेता होना चाहिए था जो सभी विद्रोहियों(क्रांतिकारियों) का उचित नेतृत्व करें और उनको एक सूत्र में बांधे रखें। जिसके कारण विद्रोही सैनिकों में अनुशासन की कमी देखी गई थी। इसके परिणाम स्वरूप हमें हार देखनी पड़ी।

4. उच्च हथियार व प्रशिक्षित सैनिकों की कमी:--- सभी विद्रोही पूर्ण रूप से प्रशिक्षित सिपाही नहीं थे। इनके पास अंग्रेज सैनिकों की तरह उच्च कोटि के हथियार नहीं थे। अनेक स्थानों पर उनको बरछी और भालों से अंग्रेजी सैनिकों से लड़ाई लड़नी पड़ी।

ऊपर लिखित कमियों के कारण हम भारतवासियों को सन् 1857 में हार देखनी पड़ी थी।

सन् 1857 की लड़ाई के बाद भारत में जो  परिणाम निकले(परिवर्तन हुए) वह इस प्रकार है:-

1. सन् 1857 के विद्रोह के कारण एक शताब्दी से चल रहा कंपनी का शासन भारत से खत्म हो गया। भारत की सत्ता को सन् 1858 के एक्ट के तहत ब्रिटिश संसद के के अधीन कर दिया गया।

2. भारत में अब गवर्नर-जनरल की सर्वोच्च ब्रिटिश शासक की उपाधि को भी बदल दिया गया इसको अब गवर्नर जनरल के बजाय "वायसराय" बोला जाने लगा।

3.इस लड़ाई के बाद भारत से मुगल वंश का बचा हुआ शासन भी समाप्त हो गया। बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार करके रंगून की जेल में डाल दिया गया। वहां पर उनकी 1862 में उनकी मृत्यु हो गई इस तरह से मुगल साम्राज्य की समाप्ति हुई।

4. यह बिल्कुल सच है कि 1857 की लड़ाई में हम भारतवासी हार गए। इस लड़ाई ने हम भारतीयों के अंदर देशभक्ति का बीज बोया था जो 1947 में बड़ा हुआ तो अंग्रेजों को जूते मार कर देश से बाहर निकाल दिया था। इस तरह से यह 1857 की लड़ाई बेकार न होकर एक महत्वपूर्ण लड़ाई साबित हुई थी।

5. ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे अधिकार ब्रिटिश महारानी को सौंप दिये डरें। ब्रिटिश संसद के एक सदस्य को भारत मंत्री बनाया गया भारतीय मामलों के लिए।

6. ब्रिटिश सरकार ने वादा किया कि वह किसी भी रियासतों पर कब्जे नहीं करेंगे। वो भारत देश की जनता के धर्मों का सम्मान करेंगे।

7. भारतीय राजाओं(शासकों) को ब्रिटिश सरकार के अधीन होकर अपना राजपाट चलाने की छूट दी गई।

8. अब अपनी सेना में अवध, बिहार, मध्य भारत व दक्षिण भारत से सिपाहियों को भर्ती करना कम कर दिया। अब इनकी बजाय मुस्लिम पठान, गोरखा व सिखों को भर्ती ज्यादा भर्ती किया जाने लगा।

9. जमींदारों और भू-स्वामियों का जमीन पर स्थाई कब्जे के लिए अंग्रेजी सरकार ने उनके हित में अनेक नीतियां बनाई।

चीन का ताइपिंग विद्रोह 

भारत में जब सन् 1857 की क्रांति फैली ठीक उसी समय चीन के दक्षिणी भागों में एक बहुत बड़ा जन विद्रोह चला हुआ था। यह विद्रोह का आरंभ 1850 में शुरू हुआ और समाप्त 1860 के मध्य में हुआ है । इस विद्रोह का नेतृत्व हाँग जिकुआंग ने किया था। परम शांति के स्वर्गिक साम्राज्य की स्थापना के लिए हाँग जिकुआंग ने हजारों मजदूरों और गरीब लोगों के साथ मिलकर लंबी लड़ाई लड़ी । चीन के इस विद्रोह को ताइपिंग विद्रोह के नाम से भी जानते हैं।

हाँग जिकुआंग अपना धर्म परिवर्तन करके ईसाई बन गया था। उसने चीन के बौद्ध धर्म और कन्फ्यूशीवाद जैसे परंपरागत धर्मों का विरोध किया था। ताइपिंग के ये विद्रोही नए साम्राज्य का की स्थापना करने का प्रयास कर रहे थे। इसके महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार है:-

  • जहां पर सभी लोग केवल ईसाई धर्म को मानेंगे।
  • कोई भी अपने पास संपत्ति नहीं रखेगा और न ही बनाएगा।
  • सभी वर्गों और स्त्री पुरुष के बीच कोई अंतर नहीं होगा।
  • नशे(अफीम, तंबाकू, शराब पीने) पर, जुआ, वेश्यावृत्ति और दास प्रथा पर पूर्ण प्रतिबंध होगा।

चीन में इस विद्रोह को कुचलने में किंग(Qing )सम्राट की मदद अंग्रेज़ी और फ्रांसीसी सेनाओं ने मिलकर की थी। अंग्रेज़ी और फ्रांसीसी सेनाओं ने इस विद्रोह को कुचल दिया था। इन दोनों सेनाओं ने बहुत सारी जनता को मौत के घाट उतार दिया था।

इस पाठ जब जनता बगावत करती है तो की मुख्य बातें जानकर आपके 90% समस्या हल हो जाएंगी। आप सभी से अनुरोध है कि इस lesson को दोस्तों को शेयर पक्का करें।

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